Skip to main content

लिमिट, फिट, टॉलरेंस

 

(Introduction)- वर्कशाप में जब पार्ट्स का उत्पादन किया जाता है तो कारीगर को पार्ट्स के बेसिक 

साइजों को थोड़ा सा बड़ा या छोटा बनाने की छूट दी जाती है। यह छूट इतनी दी जाती है कि इसमें 

पार्ट्स पर कोई प्रभावनहीं पड़ता है। क्योंकि कई कारण ऐसे होते हैं जिनसे पार्ट्स को परिशुद्ध साइज 

में नहीं बनाया जा सकता हैजैसे सूक्ष्ममापी औजारों की गलती, मशीन सेटिंग की गलती, टूल की 

खराबी आदि के कारण पार्ट्स को बनातेसमय साइज में कुछ अंतर आ सकता है। इसके अतिरिक्त 

यदि पार्ट्स को परिशद्ध माप में बना भी लियाजाए तो समय अधिक लगता है। इसलिए पार्ट्स को 

बनाने के लिए सीमा निर्धारित कर दी जाती है कि पार्ट्सको बेसिक साइज से कितनी सीमा में अधिक 

या कम साइज में बनाया जा सकता है। इससे कारीगर को पार्ट्स के साइज बनाने में आसानी रहती है 

और इस सीमा में बने पार्ट्स खराब भी नहीं  होते और अपना कार्य भलीभांति करते हैं।

अत: बेसिक साइज पर स्वीकृत अधिकतम या न्यूनतम जिस सीमा में पार्ट्स के साइज बनाए

जा सकते हैं उसे लिमिट कहते हैं।

यह निम्नलिखित दो प्रकार की होती है।

हाई लिमिट(High Limit)- किसी पार्ट्स के बेसिक साइज पर स्वीकृत अधिक से अधिक जिस सीमा

में साइज को बनाया जा सकता है उसे हाई लिमिट कहते हैं।

EXAMPLE: -

     25.00 M.M                                 HIGH LIMIT = 25.02 M.M

 +   0.02  M.M

  -     0.01 M.M

लो लिमिट(Low Limit)- किसी पार्ट्स के बेसिक साइज पर स्वीकृत कम-से-कम जिस सीमा में साइज

को बनाया जा सकता है उसे लो लिमिट कहते हैं।

EXAMPLE: -

    25.00 M.M                                   LOW LIMIT = 24.99 M.M

+   0.02 M.M

-     0.01 M.M

 

टॉलरेंस (Tolerance)

(Introduction)- पार्ट्स के किसी साइज की हाई लिमिट और लो लिमिट के अंतर को टॉलरेंस कहते । 

टॉलरेंस से कई लाभ होते है। जैसे- समय की बचत होती है और उत्पादन बढ़ता है, कम कुशल कारीगर 

से लिया जासकता है, उत्पादन की लागत कम आती है और पार्टस कम रदद होते हैं।

टॉलरॅस प्रत्येक पार्ट्स पर अलग-अलग होती है।

EXAMPLE: -

 25.00 M.M                      HIGH LIMIT - 25.03 M.M

+ 0.03 M.M                      LOW LIMIT  - 24.98 M.M

- 0.02 M.M                  

टॉलरेंस = 25.03 - 24.98 = 0.05 M.M

 

टॉलरेंस निम्नलिखित दो पद्धतियों में दी जाती है:-

 

1. यूनिलेटरल टॉलरेंस (Unilateral Tolerance)- इस पद्धति में टॉलरेंस बेसिक साइज पर केवल एक ही ओर दी जाती है अर्थात् यह टॉलरेंस केवल एक ही ओर (+) या (-) में होती है।

EXAMPLE: -

25.00 M.M                              25.00 M.M

+ 0.00 M.M                               0.01 M.M

+ 0.02 M.M                              0.03 M.M

2. बाइलेटरल टॉलरेंस(Bilateral Tolerance)- इस पद्धति में टॉलरेंस बेसिक साइज पर दोनों ओर अर्थात् (-) और (+) में दी जाती है

 

EXAMPLE: -

25.00 M.M

+ 0.02 M.M

- 0.01 M.M

 

  एलाउंस (Allowance)
(Introduction)- जब किसी निर्धारित फिट के अनुसार दो पार्ट्स को बना कर मिलाया जाता है तो इन दोनों पार्ट्स के मापों में जानबूझ कर जो अंतर रखा जाता है उसे एलाउंस कहते हैं। एलाउंस का संबंध फिट करने वाले दोनों पार्ट्स से होता है न कि किसी एक पार्ट्स से किसी फिट के अनुसार एलाउंस धनात्मक(+) या ऋणात्मक(-) हो सकता है।

एलियंस निम्नलिखित दो प्रकार का होता है।

1. अधिकतम एलाउंस(Maximum Allowance)

2.  
न्यूनतम लाइंस(Minimum Allowance)


अधिकतम एलाउंस(Maximum Allowance)-  किसी होल के साइज की हाई लिमिट और शाफ्ट हे मां की 

लो लिमिट के अंतर को अधिकतम एलाउंस कहते हैं।

EXAMPLE: -

 होल (Hole)                                                                                               शाफ्ट (Shaft)                                                

40.000 M.M                                                                                           40.000 M.M

+ 0.025 M.M                                                                                         + 0.050 M.M

- 0.000 M.M                                                                                           + 0.025 M.M

हाई लिमिट (H.L.) = 40.025 M.M                                                        हाई लिमिट (H.L.) = 39.950 M.M

लो लिमिट (L.L.) 40.000 M.M                                                              लो लिमिट (L.L.) 39.911 M.M

अधिकतम एलाउंस = होल की हाई लिमिट - शाफ्ट की लो लिमिट

= 40.025 – 39.911 = + 0.114 M.M

2. न्यूनतम एलाउंस (Minimum Allowance)- किसी होल के साइज की लो लिमिट और शाफ्ट की हाई 

लिमिट के अंतर को न्यूनतम एलाउंस कहते हैं।

EXAMPLE: -

 होल (Hole)                                                                                                                      शाफ्ट (Shaft) 

40.000 M.M                                                                                                                  40.000 M.M

+ 0.025 M.M                                                                                                                 - 0.050 M.M

 - 0.000 M.M                                                                                                                 - 0.089 M.M

हाई लिमिट (H.L) - 40.025 M.M                                                                     हाई लिमिट (H.L.) = 39.950 

लो लिमिट (L.L) 40.000 M.M                                                                             लो लिमिट (L.L) 40.000 M.M

 

न्यूनतम एलाउंस = होल की हाई लिमिट - शाफ्ट की लो लिमिट

40.000 – 39.950 =+ 0.05 M.M

 

फिट्स (Fits)

Introduction- किसी भी मशीन को अलग - अलग प्रकार के कई पार्ट्स से असेम्बल करके बनाया 

जाता है। इनमें कुछ ऐसे विशेष पार्ट्स होते हैं जिनके साइजों को सूक्ष्मता से बनाया जाता है और 

आपस में स्लाइड करते हैं या घूमते हैं। इन असेम्बल किए जाने वाले पार्ट्स के बीच में क्लीयरेंस या 

इंटरफीयॉग की मात्रा से बनने वाले संबंध को फिट कहते हैं। अत: संक्षेप में कहा जा सकता है कि 

असेम्बल किये हुए दो पार्ट्स के बीच के संबंध को फिट कहते हैं।

फिट्स को निम्नलिखित तीन ग्रुपों में बांटा गया है

क्लीयरेंस फिट (Clearance Fit)- इस फिट में होल का साइज शाफ्ट के साइज से बड़ा रखा जाता है।

जिसमें धनात्मक एलाउंस रखा जाता है। इसमें प्रायः निम्नलिखित फिट आते हैं:-

रनिंग फिट (Running Fit)- इस प्रकार के फिट में धनात्मक एलाउंस रखा जाता है जिससे दो पार्ट्स 


जब असेम्बल किए जाते हैं तो क्लीयरेंस अधिक होने के कारण शाफ्ट होल में आसानी में और फ्री 


घूम सकती है। जैसे बुश बियरिंग और शाफ्ट ।


स्लाइडिंग फिट (Sliding Fit)- इस प्रकार के फिट में धनात्मक एलाउंस रखा जाता है जो कि रनिंग 


फिट के एलाउंस की अपेक्षा कुछ कम होता है। जैसे ब्लैकिंग पंच और डाई।


2. ट्रांजीशन फिट (Transition Fit)- इस फिट में होल और शाफ्ट के बीच में एलाउंस इतना रखा 


जाता है कि न तो उसमें अधिक क्लीयरेंस और न ही अधिक इंटरफीयरेंस रह सके। इसमें 


निम्नलिखित फिट आता है।

 

पुश फिट (Push Fit)- इस प्रकार के फिट में न तो अधिक क्लीयरेंस और न अधिक इंटरफीयरेंस होता  

है। इसमें पार्ट्स को हाथ के दबाव से स्लाइड कर सकते हैं। जैसे डॉवलपिन लोकेटिंग प्लग आदि

 

3. इंटरफेरेंस फिट (Interference Fit)- इस फिट में होल का साइज शाफ्ट के साइज से छोटा होता 

है जिसमें ऋणात्मक एलाउंस रखा जाता है। इसमें प्रायः निम्नलिखित फिट आते हैं: -

फोर्स फिट (Force Fit)- इस प्रकार के फिट में होल का साइज शाफ्ट के साइज की अपेक्षा छोटा 

होता है और  दोनों पार्टी को किसी मेकैनिकल प्रेशर के द्वारा दबाव देकर फिट किया जाता है अर्थात् 

पार्ट्स को अधिकार  हाइड्रॉलिक दबाव का प्रयोग करके फिट करते हैं जैसे किसी बॉडी के हब में स्लीव 

को फिट करना हैं।

ड्राइविंग फिट (Driving Fit)- इस प्रकार के फिट में होल का साइज शाफ्ट के साइज की अपेक्षा छोटा 

होता है और  दोनों पार्ट्स को हथौड़ी की चोट लगाकर फिट करते हैं। जैसे शाफ्ट के साथ पुली या 

गियर को 'की' (Key) का   प्रयोग करके फिट करना है।

श्रिंकेज फिट (Shrinkage Fit)- इस प्रकार के फिट में मेल पार्ट् का साइज फीमेल पार्ट् के साइज को 

अपेक्षा बड़ा  रखा जाता है और दोनों पार्ट्स को असेम्बल करने के लिए पहले फीमेल पार्ट् को गर्म 

किया जाता है जिससे वह फैल जाता है। फिर मेल पार्ट् को इस गर्म किए हुए पार्ट में डालकर दोनों 

पार्ट्स को ठंडा कर देते हैं जिससे फीमेल पार्टी का फैला हुआ साइज श्रिंक हो जाता है और दोनों पार्टी 

की पकड़ मजबूत हो जाती है जैसे बैलगाड़ी का पहिया।




Popular posts from this blog

स्पेनर क्या होता है ? स्पेनर के प्रकार -

स्पेनर क्या होता है ? स्पेनर के प्रकार - जब अस्थाई रूप से फिट किये जाने वाले पुर्जे या पार्ट्स को अधिकतर नट और बोल्ट के द्वारा जोडे जाते हैं। जिनको कसने व ढीला करने के लिए जिस टूल का प्रयोग मे लाया जाता है। उसे स्पेनर (Spanner) कहते हैं। मेटेरियल (Material) - यह कास्ट आयरन, कास्ट स्टील, मीडियम कार्बन स्टील, निकल क्रोम स्टील, क्रोम वेनेडियम स्टील व वैनेडियम एलॉय स्टील से बनाये जाते है। स्पेनर्स को उसके आकार और कार्य के साइज के अनुसार बनाया जाता है। स्पेनर्स का साइज इसके ऊपर लिखा रहता हैं। इसका साइज नट या बोल्ट के हैड के साइज के अनुसार  रहता है। जैसे - सिंगल एण्डिड स्पेनर 20 मि.मी. का है तो यह स्पेनर नट या बोल्ट के 20 मि.मी. के हैड पर ही प्रयोग में लाया जा सकता है।   स्पेनर के प्रकार(Types of spanners) 1. सिंगल ऐण्डिड स्पेनर (Single Ended Spanner)-  इस प्रकार के स्पेनर का एक ही मुंह होता है जो कि एक निश्चित साइज में बना होता है। इस स्पेनर का प्रयोग केवल एक साइज के नट व बोल्ट को ढीला करने व कसने के लिए किया जाता है। 2. डबल ऐण्डिड स्पेनर (Double Ended Spanner)...

प्लायर्स (Pliers) क्या होता है ? कितने प्रकार के होते है ?

प्लायर्स(Pliers) क्या होता है ? कितने प्रकार के होते है ? प्लायर्स एक प्रकार का हैंड टूल्स है। जिसका प्रयोग वर्कशॉप में कार्य करते समय छोटे-छोटे पार्ट्स को पकड़ने के लिए किया जाता है। प्लायर्स अधिकतर कास्ट स्टील का बनाया जाता है। प्लायर्स के मुख्य पार्ट्स - हैंडल, रिवेट, जॉस होता है। प्लायर्स के प्रकार (Types of Pliers) 1. साइड कटिंग प्लायर्स (Side Cutting Pliers) - इसको फ्लैट नोज़ प्लायर भी कहते हैं। इसके दोेनो जॉ के बीच में कटिंग ऐज बने होते हैं। जिससे तार को कटा जा सकता है। इस प्लायर्स का प्रयोग अधिकतर वर्कशॉप के सभी विभागों में किया जाता है। बिजली विभाग में इस प्लायर्स को प्रयोग में लाया जाता है। 2. लांग नोज़ प्लायर्स (Long Nose Pliers) - इस प्रकार के प्लायर्स के जॉ लंबे और आगे से नुकीले होते हैं। इसका प्रयोग प्रायः तंग स्थानों पर किसी पार्ट्स को पकड़ने के लिये किया जाता है। इसका अधिकतर प्रयोग बिजली मैकेनिक और छोटे-छोटे मैकेनिकल कार्य के किया जाता हैं। इसके जॉ में भी कटिंग ऐज बने होते हैं। जिससे तार को काटा जा सकता है। 3. स्लिप ज्वाइंट प्लायर्स (Slip Joint...

'सी' क्लेेम्प क्या होता है ?

यह अंग्रेजी के अक्षर 'C' के आकार का बना हुआ क्लेम्प होता है जिसकी बनावट में एक स्क्रू, हैंडल और फ्रेम होते हैं। स्क्रू और हैंडल माइल्ड स्टील के बने होते हैं और फ्रेम प्राय: कास्ट स्टील से बनाया जाता है। कार्य वा उपयोग के अनुसार ये तीन प्रकार के प्रयोग में लाये जाते हैं। बड़े कार्यों के लिये हैवी ड्यूटी (Heavy Duty), साधारण कार्यो के लिये जनरल सर्विस (General Service) और छोटे व हल्के कार्यो के लिए लाइट ड्यूटी (Light Duty) 'सी' क्लेम्प प्रयोग में लिया जाता हैं। साइज (Size)- 'सी' क्लेम्प में अधिक-से-अधिक जितने साइज का जॉब बांधा जा सकता है उसके अनुसार इसका साइज किया जाता है- जैसे 100 मि.मी. वाले 'सी' क्लेम्प में 100 मि.मी. साइज तक के जॉब बांधे जा सकते हैं। प्रयोग (Uses)- 'सी' क्लेम्प का अधिकतर प्रयोग मार्किंग, ड्रिलिंग, सोल्डरिंग, ब्रेजिंग इत्यादि करते समय दो या दो से अधिक पार्ट्स को क्लेम्प करने के लिये किया जाता है। अधिकतर छोटे व हाथ के कार्यों में प्रयोग में लाए जाते हैं।