पंच क्या है ? पंच के उपयोग ।।
जब कोई जॉब बनाया जाता है या जॉब पर काम किया जाता है। तो जॉब बनाने के लिए पहले उस पर मार्किंग मीडिया लगाया जाता है। और दिए गए ड्राइंग के अनुसार मार्किंग किया जाता है। कार्य करते समय जॉब को कई बार पकड़ना पड़ता है। जिससे के कारण मार्किंग मीडिया छूट जाता है या मिट जाता है। इसलिए किए गए मार्किंग को स्थाई करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए जिस टूल का प्रयोग किया जाता है उसे पंच कहते हैं। पंच के द्वारा मार्किंग किए गए ड्राइंग के ऊपर डॉट लगा दिए जाते हैं जिससे कि मार्किंग जॉब बनाने के अंतिम समय तक आसानी से दिखाई देता है।
पंच की बॉडी अष्टभुजा आकार की होती है या उसको बोलनाकार बनाकर नर्लिंग कर दिया जाता है इसे पकड़ने में आसानी होती है।
बनावट (Structure) - हैड, बॉडी वा प्वाइंट होता है।
मेटेरियल (Material) - पंच अधिकतर हाई कार्बन
जाते हैं और इनके प्वाइंट को हार्ड वा टेंपर कर दिया जाता है।
साइज (Size) - पंच का साइज उसकी पूरी लंबाई और इसके व्यास (Diameter) से लिया जाता है। जैसे - -125×10.25 mm
पंच के प्रकार (Tupes of Punch)
1. डॉट पंच ( Dot Punch) - डॉट पंच के पॉइंट को 60 डिग्री के कोण मैं ग्राइंड करके बनाया जाता है। इसका प्रयोग मार्किंग करने के पश्चात उन्हें स्थाई करने के लिए किया जाता है।
2. सेंटर पंच (Center Punch) - सेंटर पंच को 90 डिग्री के कोण में ग्राइंड करके बनाया जाता है। मुख्य प्रयोग ड्रिल के लिए सेंटर होल की पंचिंग करने के लिए किया जाता है।
3. प्रिक पंच (Prick Punch) - प्रीक पंच के पॉइंट को 30 डिग्री के कोण में ग्राइंड करके बनाया जाता है। इसका प्रयोग नरम धातु के जॉब पर की हुई मार्किंग लाइनों को डॉट लगाकर स्थाई करने के लिए किया जाता है। जैसे - एल्युमीनियम, पीतल, तांबा, सोना, चांदी इत्यादि।
4. ऑटोमैटिक पंच - ऑटोमेटिक पंच एक प्रकार का आधुनिक पंच है। इसका प्रयोग करते समय पंच को हैमर से उसे चोट करने की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें एक स्प्रिंग होती है और ऊपर नर्लिंग की हुईं कैप होती है। पंचिंग करते समय इसको हाथ से से दबाव डाला जाता है। जिससे प्वाइंट की सहायता से डॉट लग जाता है। इसका पॉइंट कार्य के अनुसार 90 डिग्री या 60 डिग्री के कोण में हो सकता है।

